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शब्दयोग सत्संग
३० जून, २०१८
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
गीत: ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
सुर्ख फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें
ज़िन्दगी जब भी तेरी.
याद तेरी कभी दस्तक, कभी सरगोशी से
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें
ज़िन्दगी जब भी तेरी.
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यों है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें
ज़िन्दगी जब भी तेरी.
गीत: ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
फ़िल्म: उमराव जान (1981)
संगीतकार: खैय्याम, तलत अज़ीज़
बोल: शहरयार
संगीत: मिलिंद दाते